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रविवार, 29 नवंबर 2015

वो चूसी हुई टॉफी-ये टॉफी का डब्बा

  वो चूसी हुई टॉफी-ये टॉफी का डब्बा 

भाईदूज पर बड़े इसरार के बाद,
मेरा भाई आया
मैंने उसे टीका लगाया
और अपने हाथों बनाई
उसकी पसंद की मिठाई
बेसन की बर्फी खिलाई
भाभी के अनुशासन मे बंधे,
भाई ने बर्फी का एक टुकड़ा मात्र खाया
और मुझे बदले में ,चॉकलेट का एक डिब्बा पकड़ाया
और बोला दीदी,मुझे जल्दी जाना है
तेरी भाभी को भी ,अपने भाइयों को निपटाना है
ये निपटाना शब्द मुझे नश्तर चुभो गया
आदमी क्या से क्या हो गया
वो रिश्ते ,वो प्यार, जाने कहाँ खो गया
न चाव ,न उत्साह ,वही भागा दौड़
कब समझेगा वो रिश्तों का मोल
रिश्ते निभाने के लिए होते है ,
निपटाने के लिए नहीं,
ये रस्मे मिलने मिलाने के लिए होती है,
सिर्फ देने दिलाने के लिए नहीं
फिर मैंने जब चॉकलेट का डिब्बा खोला ,
तो बचपन का एक किस्सा याद आया
एक दिन छोटे  भाई   स्कूल में ,किसी बच्चे ने ,
अपना जन्म दिन था मनाया
और उसने सबको थी बांटी
दो दो चॉकलेट वाली टॉफी
उसने एक खाई और एक मेरे लिए रख दी
पर उसका स्वाद उसे फिर से याद आगया जल्दी
उसने चुपके से रेपर खोला ,थोड़ी चूसी ,
और रख दी रेपर मे 
उसने यह प्रति क्रिया फिर दोहराई ,
जब तक मैं देर तक  ना पहुंची घर में
फिर उसका जमीर जागा
उसने अपनी कमजोरी और लालच त्यागा
और मम्मी को आवाज लगाईं
मम्मी ये टॉफी इतनी ऊपर रखदो
जहां तक मेरे हाथ पहुंच ही पाएं नहीं
माँ,उसकी मासूमियत पर कुर्बान हो गई
 और मैं जब पहुंची ,तो उसने झिझकते हुए बोला था
दीदी टॉफी अच्छी है ,मैंने चखली थी
उसकी ये मासूमियत ,लगी मुझे बड़ी भली थी         
 मुझे याद आ गया ,उसका वो बचपन का प्यार
और आज वो बर्फी खाने से इंकार
 शादी के बाद ,
क्यों बदलजाता है आदमी का व्यवहार
आज मैं सोचती हूँ ,
कि जो स्वाद उस भाई की चूसी हुई ,
और प्यार से सहेजी हुई टॉफी में आया था,
क्या वह वह स्वाद ,
रसम निपटाने के लिए दी गयी ,
डब्बे की सौ टॉफियों में भी आ पायेगा
क्या जीवन ,इसी 'फॉर्मेलिटी'में गुजर जाएगा

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

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