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गुरुवार, 26 नवंबर 2015

माँ की पीड़ा

          माँ की पीड़ा

बेटा,तेरी ऊँगली पकड़े ,तुझे सिखाती थी जब चलना,
मैंने ये न कभी सोचा था , ऊँगली मुझे दिखायेगा तू 
माँ माँ कह कर,मुझको पल भर ,नहीं छोड़ने वाला था जो,
ख्याल स्वपन में भी ना आया ,इतना मुझे सताएगा तू
तुझको अक्षर ज्ञान कराया ,हाथ पकड़ कर ये सिखलाया ,
कैसे ऊँगली और अंगूठे ,से पेंसिल पकड़ी  जाती है
कैसे तोड़ी जाती रोटी ,ऊँगली और अंगूठे से ही ,
कैसे कोई चीज उठा कर , मुंह तक पहुंचाई जाती है
जब भी शंशोपज में होती ,मैं दो ऊँगली तेरे आगे ,
रखती ,कहती एक पकड़ ले,मेरा निर्णय वो ही होता
तुझे सुलाती,गा कर लोरी,इस डर से मैं चली न जाऊं ,
तू अपने नन्हे हाथों से ,मेरी उंगली   पकड़े  सोता
ऊँगली पकड़ ,तुझे स्कूल की बस तक रोज छोड़ने जाती,
बेग लादती,निज कन्धों पर,तुझ पर बोझ पड़े कुछ थोड़ा
मेला,सड़क,भीड़ सड़कों पर ,तेरी ऊँगली पकड़े रहती ,
इधर उधर तू भटक न जाए,तू मुझको देता था  दौड़ा   
मैं ये  जो इतना करती  थी ,मेरी ममता और स्नेह था,
और कर्तव्य समझ कर इसको,सच्चे दिल से सदा निभाया
जब वृद्धावस्था आएगी,  तब तू मुझे सहारा देगा  ,
हो सकता है  भूले भटके ,ऐसा ख्याल जहन  में आया
बड़े चाव से हाथ तुम्हारा ,थमा दिया था  बहू हाथ में ,
मैं थोड़ी निश्चिन्त हुई थी, अपना ये कर्तव्य निभा कर
मेरी ऊँगली  छोड़ नाचने ,लगा इशारों पर तू उसके ,
मुझको लगा भूलने जब तू,पीड हुई,ठनका मेरा सर
लेकिन मैंने टाल दिया था  ,क्षणिक मतिभ्रम ,इसे समझ कर,
सोचा जोश जवानी का है ,धीरे धीरे समझ आएगी
फिर से कदर करेगा माँ की,तू अपना कर्तव्य समझ कर,
मेरी शिक्षा ,संस्कार की,मेहनत व्यर्थ नहीं जायेगी
लेकिन तूने मर्यादा की ,लांध दिया सब सीमाओं को ,
ऐसे मुझे तिरस्कृत करके ,शायद चैन न पायेगा तू
बेटा तेरी ऊँगली पकड़े,तुझे सिखाती थी जब चलना ,
मैंने ये न कभी सोचा था ,ऊँगली मुझे दिखायेगा  तू

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 


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