पृष्ठ

बुधवार, 21 अक्टूबर 2015

हम तुम -संग संग

    हम तुम -संग संग

मैं  काहे  कोठी, बंगला लूँ ,
या फ्लेट कहीं बुक करवालूँ
मेरे रहने को तेरे दिल का एक कोना ही काफी है
क्यों चाट पकोड़ी  मैं खाऊँ
'डोमिनो' पिज़ा  मंगवाऊँ
मेरे खाने को तुम्हारी ,मीठी सी झिड़की काफी है
क्यों पियूं कोई शरबत,पेप्सी
बीयर ,दारू  या  फिर  लस्सी
मेरे पीने को तुम्हारा ,ये रूप, प्रेम रस  काफी है
मैं तेरे  दिल में बस जाऊं
और नैनों में तुम्हे बसाऊं 
खुदमें खुद बस कर मुझे मिले,संग तुम्हारा काफी है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।