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गुरुवार, 25 जून 2015

बदरंगी भाईजान

                बदरंगी भाईजान

इतने बरसों थे सत्ता में ,तब नहीं किसी का रखा ख्याल
बस लिप्त रहे घोटालों में, और रहे कमाते  खूब माल
अब उतर गए जब कुर्सी से ,तो बदल गयी है चाल ढाल
कोई की फसल खराब हुई,पूछा करते हो ,दौड़, हाल
इस हालचाल के तामझाम में जितने पैसे लूटा रहे
पेपर और टी वी वालों की,तुम भीड़ ढेर सी जुटा रहे
यदि उसका पांच प्रतिशत भी,तुम उस गरीब के घर देते
उसकी सब चिंता हर लेते,उसको निहाल  तुंम कर देते
उस त्रसित दुखी के बच्चों को ,मिलती दो रोटी खाने को
तुम बहा रहे हो घड़ियाली ,ये आंसू सिर्फ दिखाने को
हर जगह दौड़ कर जाते हो तुम सहानुभूति दिखलाने को
ये सारा नाटक करते हो तुम अपनी छवि  चमकाने   को
सात आठ साथ में चमचे है ,दो चार रट  लिए है जुमले
जनता का हिती बता खुद को ,सत्तादल पर करते हमले
ये फल है सभी कुकर्मों का ,जनता ने मारी तुम्हे लात
नाकारा समझ नकार दिया ,हर जगह करारी मिली मात
जब हार गए तो भाग गए ,कितने दिन तक लापता रहे
खुद को मुश्किल के मारों का ,तुम आज मसीहा बता रहे
जनता ने काफी झेल लिया ,अब और झेल ना पाएगी
 झूंठे वादों ,आश्वासन के ,बहकावे में ना  आएगी
अब है  तूणीर में तीर नहीं ,और पड़ी हुई ढीली कमान
कल थे बजरंगी भाईजान,अब  हो बदरंगी  भाईजान

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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