वहाँ के वहीँ
वो पहुंचे ,कहाँ से कहीं है
हम जहाँ थे, वहीँ के वहीँ है
मुश्किलें सामने सब खड़ी थी
उनमे जज्बा था,हिम्मत बड़ी थी
हम बैठे रहे बन के बुजदिल
वो गए बढ़ते और पा ली मंजिल
हम रहे हाथ पर हाथ धर कर
सिर्फ किस्मत पे विश्वास कर कर
कर्म करिये, वचन ये सही है
वो पहुंचे कहाँ से कहीं है
जब मिला ना जो कुछ,किसको कोसें
आदमी बढ़ता , खुद के भरोसे
है जरूरी बहुत कर्म करना
यदि जीवन में है आगे बढ़ना
वो मदद करता उसकी ही प्यारे
मुश्किलों में जो हिम्मत न हारे
बात अब ये समझ आ गयी है
वो पहुंचे ,कहाँ से कहीं है
हम जहाँ थे , वहीँ के वहीँ है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
वो पहुंचे ,कहाँ से कहीं है
हम जहाँ थे, वहीँ के वहीँ है
मुश्किलें सामने सब खड़ी थी
उनमे जज्बा था,हिम्मत बड़ी थी
हम बैठे रहे बन के बुजदिल
वो गए बढ़ते और पा ली मंजिल
हम रहे हाथ पर हाथ धर कर
सिर्फ किस्मत पे विश्वास कर कर
कर्म करिये, वचन ये सही है
वो पहुंचे कहाँ से कहीं है
जब मिला ना जो कुछ,किसको कोसें
आदमी बढ़ता , खुद के भरोसे
है जरूरी बहुत कर्म करना
यदि जीवन में है आगे बढ़ना
वो मदद करता उसकी ही प्यारे
मुश्किलों में जो हिम्मत न हारे
बात अब ये समझ आ गयी है
वो पहुंचे ,कहाँ से कहीं है
हम जहाँ थे , वहीँ के वहीँ है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 28-05-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1989 में दिया गया है
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
बहुत खूब ,
जवाब देंहटाएंकभी यहाँ भी पधारें
http://madan-saxena.blogspot.in/
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http://mmsaxena69.blogspot.in/
बढ़िया
जवाब देंहटाएंSunder bhee saty bhee.
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