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बुधवार, 13 मई 2015

इंटीरियर बदल डाले

            इंटीरियर  बदल डाले

हमारा एक्सटीरियर तो ,बदलना अब बड़ा मुश्किल ,
       फरक कुछ भी नहीं पड़ता ,भले गोरे  हो  या काले
हमें कुछ चेंज लाना है और घर अपना सजाना है ,
       चलो इंटीरियर ही फिर ,हम इस घर का बदल डाले
 दिलों की जिन दीवारों पर ,टंगी है भावना कलुषित
 प्रेम की पेंटिंग  लटका ,  करें वो जगहें   आभूषित
वो उस टेबल के कोने में ,पड़ा जो नकली गुलदस्ता,
      उसे हम ताज़ा फूलों की , महक  से फिर सजा डालें 
      चलो इन्टेरियर ही फिर ,हम इस घर का , बदल डालें
पलंग के सिरहाने की ,दिशा पूरब मुखी कर दें
चैन से नींद आएगी  ,चलो खुद को सुखी कर दें
बड़ी मटमैली सी लगती ,पुरानीसी ,घिसी चादर,
         कोई   रंगीन फूलों की  नयी चादर  वहां डालें
       चलो इंटीरियर ही फिर ,हम इस घर का बदल डालें 
बड़ा गंभीर चुप चुप सा ,बना माहौल  है बासी
खोल दें  खिड़की दरवाजे ,हवा आने दें हम ताज़ी
पडी है बंद जो जो भी ,टंगी दीवार की घड़ियाँ ,
       उन्हें फिर से नयी गति दें,और नूतन 'सेल'हम डालें
       चलो इन्टेरियर ही फिर ,इस घर का हम बदल डालें
बड़ी ही बेतरीबी से  ,है घर सारा  यूं ही बिखरा 
बुहारें गंदगी सारी , कहीं भी ना दिखे कचरा
गर्म मिजाज मौसम मे,लगे है सूखने पौधे  ,
   उन्हें  सींचें ,दें   नवजीवन ,और पानी वहां डालें
   चलो इंटीरियर ही फिर,इस घर का हम बदल डालें  

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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