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सोमवार, 11 मई 2015

पिताजी की डाट

         पिताजी की डाट

हमें है याद बचपन में ,पिता का खौफ खाते थे
कोई हो काम करवाना  तो अम्मा को पटाते थे
बहुत डरते थे और एकदिन गजब की डाट खाई थी
वजह  तो याद ना लेकिन,हुई अच्छी ठुकाई थी
मगर वो डाट ,बन कर सीख ,हमें है टोकती रहती
गलत कुछ भी करे हम तो ,वो हमको रोकती रहती
प्यार से दे नसीहत अम्मा ,भी वो बात कहती थी
मगर झट भूल जाते थे , नहीं कुछ  याद रहती  थी
 पिता ने डाट कर के  ,पढ़ाया कुछ पाठ   ऐसा  है
असर जिसका इस जीवन में ,अभी तक है ,हमेशा है
भले ही बात तीखी हो , सदा पर याद है  आती
बिना कड़वी दवा खाए ,बिमारी है नहीं जाती

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

1 टिप्पणी:

  1. बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी ...बेह्तरीन अभिव्यक्ति ...!!शुभकामनायें. कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.

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