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सोमवार, 19 जनवरी 2015

माँ से

          माँ  से
माँ !
तुमने नौ महीने तक ,
अपने तन में मेरा भार ढोया
प्रसव पीड़ा सही और 
मुझे दुनिया में लाने के,
सपनो को संजोया
मुझे भूख लगी तो,
मुझे छाती से लिपटा  दूध पिलाया    
मैं रोया तो ,
मुझे गोदी में ले दुलराया 
मुझे सूखे में सुला कर ,
खुद  गीले बिस्तर पर सोई
दर्द मुझे हुआ ,
और तुम रोई
शीत  की सिहरती रात में,
तुमने बन कम्बल ,
मुझे सम्बल दिया
बरसात के मौसम में,
अपने आँचल का  साया दे,
मुझे भीगने नहीं दिया
गर्मी की दोपहरी में ,
अपने आँचल का पंखा डुलाती रही
अपनी  छत्रछाया में ,
हमेशा मुझे परेशानियों से बचाती रही
माँ,जिस ममता,वात्सल्य से ,
तुमने मुझे पाला है
तुम्हारा  वो प्यार अद्भुत और निराला है
मैं इतना लाड प्यार और कहाँ से पाउँगा ?
क्या मैं कभी इस ऋण को चुका पाउँगा ?

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

1 टिप्पणी:

  1. सच माँ के ऋण से कोई उऋण नहीं हो सकता ....काश सभी यह बात समझ पाते ..
    माँ को समर्पित सुन्दर रचना

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