पुरानी इमारत
न टूटे जोड़ ईंटों के, नहीं उखड़ा पलस्तर है
दरो दीवार इस घर की ,अभी तक सब सलामत है
नहीं वीरानगी इसमें ,बसावट तेरी यादों की ,
लखोरी ईंटों वाली ये ,बड़ी पुख्ता इमारत है
पुरानी प्यार की बातें , खुशबूयें वो जवानी की,
यहाँ पर हर तरफ बिखरी मोहब्बत ही मोहब्बत है
नज़ारे कितने ही रंगीनियों के , इनने देखे है ,
छुपा कर राज़ सब रखना ,दीवारों की ये आदत है
भले दिखती पुरानी है ,चमक आ जाएगी इनमे ,
ज़रा सा रंग रोगन बस ,कराने की जरुरत है
न तो ये खंडहर होगी ,न ही स्मारक बनेगी ये,
बनेगी 'हेरिटेज होटल',पुरानी शान शौकत है
हो गए हम भी है बूढ़े ,पुरानी इस इमारत से ,
साथ यादों के जी लेंगे ,हमें फुरसत ही फुरसत है
नहीं दो रूम वाले फ्लेट की इस संस्कृति में हम,
कभी हो पाएंगे फिट ,हमें तो बंगले की आदत है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
न टूटे जोड़ ईंटों के, नहीं उखड़ा पलस्तर है
दरो दीवार इस घर की ,अभी तक सब सलामत है
नहीं वीरानगी इसमें ,बसावट तेरी यादों की ,
लखोरी ईंटों वाली ये ,बड़ी पुख्ता इमारत है
पुरानी प्यार की बातें , खुशबूयें वो जवानी की,
यहाँ पर हर तरफ बिखरी मोहब्बत ही मोहब्बत है
नज़ारे कितने ही रंगीनियों के , इनने देखे है ,
छुपा कर राज़ सब रखना ,दीवारों की ये आदत है
भले दिखती पुरानी है ,चमक आ जाएगी इनमे ,
ज़रा सा रंग रोगन बस ,कराने की जरुरत है
न तो ये खंडहर होगी ,न ही स्मारक बनेगी ये,
बनेगी 'हेरिटेज होटल',पुरानी शान शौकत है
हो गए हम भी है बूढ़े ,पुरानी इस इमारत से ,
साथ यादों के जी लेंगे ,हमें फुरसत ही फुरसत है
नहीं दो रूम वाले फ्लेट की इस संस्कृति में हम,
कभी हो पाएंगे फिट ,हमें तो बंगले की आदत है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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