पृष्ठ

शनिवार, 13 दिसंबर 2014

वक़्त का मिजाज

           वक़्त का मिजाज

रात जब सोया था छिटकी चांदनी थी ,
 सवेरे जब उठा ,देखा कोहरा  है
यूं ही पल पल रंग है अपने बदलता ,
वक़्त का मिजाज कितना दोहरा है

कौन सा पल कब बदल दे जिंदगानी ,
किसी को होता नहीं इसका पता है 
समय पर बस नहीं चलता है किसीका,
देखिए इंसान की क्या विवशता है
आसमां था साफ़ ,सूरज चमचमाता ,
कुछ पलों के बाद बादल से भरा है
यूं ही पल पल रंग है अपने बदलता ,
वक़्त का मिजाज कितना  दोहरा है

इस तरह से बदल जाती भावनायें ,
कल तलक था प्यार ,अब नफरत भरी है
जिसे देखे बिन नहीं था चैन कल तक,
आज उसने ,नज़र अपनी फेर ली  है
कल तलक था रेशमी तन जो सलोना,
उम्र के संग हो गया वो खुरदुरा  है
यूं ही पल पल रंग है अपने बदलता ,
वक़्त का मिजाज कितना  दोहरा है

कल तलक था दूध मीठे स्वादवाला ,
आज खट्टा पड़ गया है,फट गया है
एक जुट परिवार रहता था कभी जो,
कितने ही हिस्सों में अब वो बंट गया है
देखता है रोज ही ये सभी होते ,
वक़्त से इंसान फिर भी ना डरा  है   
यूं ही पल पल रंग है अपने बदलता ,
वक़्त का मिजाज कितना दोहरा है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।