पृष्ठ

मंगलवार, 8 जुलाई 2014

दौलत -महोब्बत की

             दौलत -महोब्बत की

बड़ा ही नाज़ दिखलाते ,
हुस्न पर अपने इतराते,
 हवा में उड़ते रहते है,
             जवानी जिस पे चढ़ती है
समय के साथ दुनिया की ,
हक़ीक़त सामने आती ,
ये गाडी जिंदगानी की,
           बड़ी रुक रुक के बढ़ती है
दौलते जिस्म हो चाहे,
दौलते  हुस्न हो चाहे ,
ये दोनों दौलतें ऐसी ,
         समय के साथ ढलती है
मगर  दौलत महोब्बत की,
 इश्क़ की और चाहत की ,
  ये दौलत  दोस्ती की है,
           दिनों  दिन दूनी बढ़ती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।