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शुक्रवार, 18 जुलाई 2014

खून का खेल

            खून का खेल
एक तो तंग हमको कर कर रखा इन मच्छरों ने है ,
               रात भर तुनतुनाते और हमारा खून पी जाते
दूसरा तंग हमको कर रखा इन डाक्टरों ने है,
             बिमारी कोई हो ना हो,   खून का टेस्ट  करवाते
तीसरा घर की घरवाली ,रोज फरमाइशें कर कर,
               अदा से प्यार से ,मनुहार से सब खून पीती है 
बॉस दफ्तर में कस कर,काम करवाते है खूं पीते,
               नहीं केवल हमारी ये ,सभी की आपबीती है
खौलता खून है सबका ,मगर कुछ कर नहीं पाते ,
               हमारा खून पीती ,मुश्किलें ,जो रोज आती है
और उस पे ये मंहगाई ,हमारे खून की दुश्मन,
            मुंह सुरसा  सा फैलाती ,दिनोदिन बढ़ती जाती है
रोज हम लेते है लोहा,जमाने भर की दिक्कत से ,
            मात्रा 'आयरन 'की खून में ,बिलकुल न बढ़  पाती
कभी 'ऐ 'है,कभी 'ओ'है ,कभी 'बी पोसिटिव'कहते,
           खून की कितनी भाषाएँ ,समझ में ही नहीं आती 
हो गए इस तरह से 'प्रेक्टिकल'लोग दुनिया के ,
           आजकल खून का रिश्ता ,बड़ी मुश्किल से निभता है
गए दिन खून की सौगंध खाने वाले वीरों के ,
            आजकल खून तो एक 'कमोडिटी'है,खूब बिकता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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