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गुरुवार, 5 जून 2014

जिंदगी का सफर

        जिंदगी का सफर

टर्मिनस से टर्मिनस तक ,बिछी हुई,लोहे की रेलें
जिन पर चलती रेल गाड़ियां ,कोई पीछे, कोई पहले
कोई तेज और द्रुतगामी,कोई धीमे और रुक रुक कर
स्टेशन से स्टेशन तक ,बस काटा करती है चक्कर
कोई भीड़ भरी पैसेंजर ,तो कोई ऐ. सी. होती है
कोई मालगाड़ियों जैसी ,जो केवल बोझा  ढोती है  
यात्री चढ़ते और उतरते ,हर गाडी में बहुत भीड़ है
हर यात्री की अलग ख़ुशी है,हर यात्री की अलग पीड है
कोई लूटता ,मज़े सफर के,कोई रहता परेशान है
कोई हेंड बेग लटकाये ,कोई के संग ताम झाम  है
अपनी यात्रा कैसे काटें,यह सब तुम पर ही निर्भर है
प्लानिंग सही,रिज़र्वेशन हो ,तो होता आसान सफर है
इन्ही रेल की यात्रा जैसा,होता है अपना जीवन पथ
एक जन्म का टर्मिनस है ,एक मृत्यु का है टर्मिनस
कोई गाड़ी कैसी भी हो,लेकिन सबका पथ है निश्चित
दुर्घटना का ग्रास बनेगी ,अगर हुई जो पथ से विचलित
और हम बैठे हुए ट्रेन में,जीवन का कर रहे सफर है 
रेल गाड़ियां,आती ,जाती,हम तो केवल ,पैसेंजर है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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