पृष्ठ

शनिवार, 24 मई 2014

संगत का असर

          संगत का असर

तपाओ आग में तो निखरता है रंग सोने का,
                          मगर तेज़ाब में डालो तो पूरा गल ही जाता है
है मीठा पानी नदियों का,वो जब मिलती समंदर से ,
                           तो फिर हो एकदम  खारा ,बदल वो जल ही जाता है  
असर संगत  दिखाती है,जो जिसके संग रहता है,
                            वो उसके रंग में रंग  धीरे धीरे  ,खिल ही जाता  है
अलग परिवारों से पति पत्नी होते ,साथ रहने पर,
                            एक सा सोचने का ढंग उनका  मिल ही जाता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।