पृष्ठ

मंगलवार, 13 मई 2014

पसीना सबका छूटा है

     पसीना सबका छूटा है

कभी लन्दन की महारानी,कभी इटली की महारानी ,
                              विदेशी मेडमो ने देश मेरा ,खूब लूटा है
सताया खूब जनता को,मार  मंहगाई की चाबुक ,
                            बड़ी  मुश्किल से अब की बार उनसे पिंड छूटा है  
दुखी  जनता बड़ी बदहाल थी और परेशाँ भी थी,
                             घड़ा जो पाप का था भर गया ,अब जाके फूटा है
गिरी का शेर बब्बर जब दहाड़ा जोशमे आकर,
                             रंगे  सियार थे जितने ,पसीना  सब का छूटा है

घोटू

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।