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बुधवार, 9 अप्रैल 2014

शंका और समाधान

          शंका और समाधान

कई  बार  मैं  पूछा  करता  हूँ  अपने से
क्यों ये खुशियों के दिन लगते है सपने से
और क्यों लम्बी होती है ये  दुःख की रातें
क्यों न जिंदगी हरदम कटती हँसते गाते ?
कैसा है ये प्रकृति ने   संसार  बनाया
कहीं बनाये सागर,कहीं पहाड़ बनाया
और कहीं पर मरुस्थल, बस रेत  रेत  है
हरियाली है ,कहीं लहलहा रहे खेत  है
कहीं झर रहे झरने,गहरी खाई कहीं पर
कल कल करती  नदिया है लहराई कहीं पर
प्रभु क्यों ना ये पूरी धरा सपाट  बनाते ?
क्यों न जिंदगी हरदम कटती हँसते गाते
 ऐसा क्यों है,कभी खुशी है और कभी गम
बार बार क्यों बदला करते है ये मौसम
कहीं शीत है,   बरफ बरसती ,गिरते ओले
और कहीं पर ,गरम धूप है,लू के शोले
अलग अलग जगहों पर अलग अलग ऋतुएं है
कोई नहीं समझ पाता  ,होता क्यू ये  है
कहीं बसन्ती मौसम और कहीं बरसातें
क्यों न जिंदगी हरदम कटती हंसते गाते
 फिर मेरे मन ने समझाया,क्यों रोता है
सुख भी तब ही सुख लगता,जब दुःख होता है
सूरज तपता ,तब ही शीतल लगे चांदनी
उंच नीच के कारण ही सुन्दर है अवनी 
प्रभु की अनुपम कृति जिसे हम कहते नारी
कैसी लगती ,यदि सपाट जो होती  सारी
बिन नमकीन, सिर्फ मीठा क्या हम खा पाते ?
सुख दुःख से ही कटे जिंदगी ,हंसते गाते

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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