पृष्ठ

रविवार, 16 मार्च 2014

झपकियाँ

         झपकियाँ

ट्रेन में या बसों में या कार में
यहाँ तक के सिनेमा के हाल में
और हवाई उड़ानों के दरमियाँ
जायेंगे मिल ,लोग लेते झपकियाँ
           आप यदि कोई कथा में जायेंगे
            आधे श्रोता ,ऊंघते मिल जायेंगे
            कथावाचक इसलिए ही  बीच में ,
            जगाने को,कीर्तन करवाएंगे
नेताओं के लम्बे भाषण होरहे
पाओगे तुम,लोग कितने सो रहे
यहाँ तक कि मंच पर आसीन भी,
  कई नेता नींद में है खो   रहे        
               हाल में संसद के देखो बेखबर
                झपकियाँ लेते है नेता बैठ कर
                पहनते है काला चश्मा लोग कुछ,
                 झपकियाँ लेते, नहीं आये नज़र
नींद आने के लिए जब लपकती
कभी खुलती, कभी आँखें झपकती
कभी खर्राटों के स्वर भी गूंजते ,
और रह रह कर के गर्दन संभलती
               नींद आने का है सिग्नल  झपकियाँ
                रोकना होता है मुश्किल   झपकियाँ
                क्या  करेगा वो सुहागरात को ,
                 फेरों पे बैठा  जो लेता   झपकियाँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'   
 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।