पृष्ठ

रविवार, 22 दिसंबर 2013

धरम की बात

           धरम की बात 
(एक नास्तिक प्रोफ़ेसर को उसकी
आस्तिक पत्नी का धर्मोपदेश)

सुनो श्रीमान जी ,       बात है ये ज्ञान की
भले करम कीजिये  ,  दान धरम कीजिये      

दान बड़ी चीज है ,       मुक्ति  का ये बीज है
लिखा है पुराण में ,      कलयुगी  जहान  में
मोक्ष प्राप्ति वास्ते ,      दान     धरम  रास्ते 
और एक आप हो ,       जो दान के खिलाफ हो
दान करूं  ,टोकते          मेरी राह रोकते
प्रोफ़ेसर साहब ओ !       तुम बड़े खराब हो
कुछ तो शरम कीजिये    दान धरम कीजिये

कितने हो कंजूस तुम      बड़े मक्खीचूस तुम
मोटी सी पगार है             बेंक में हज़ार   है
खर्च करते डरते पर           दान से मुकरते पर
मेरी कुछ न मानते           अपनी ही हो तानते
सूना सूना घर पड़ा             अखरता है मुझे बड़ा
हम अकेले जीव दो             रह सकेंगे अब न यों
मुझपे  रहम कीजिये        दान धरम  कीजिये

अब तलाक बहुत सहा        कितनी बार है कहा
गंगा स्नान कीजिये           पुण्य दान   कीजिये
विश्वनाथ ही चलें                साथ साथ ही चलें
तुमने पर मना किया          बहाना  बना दिया 
मीटिंग में जाना है              लेक्चर  बनाना है
मीटिंग और लेक्चर            बीत जायेगी  उमर
इनको तो कम कीजिये        दान धरम  कीजिये

मेरी बात मानिये                खरी खरी जानिये
पैसा कुछ न जाएगा            चोखा रंग आयेगा
एक बात है पिया                 जांचते हो कापियां
करते लड़के फ़ैल हो             जैसे कोई खेल हो
तो एक काम कीजिये            मार्क्स  दान दीजिये
एक भी न काटिये                 खुल्ले हाथ बांटिये
परीक्षा में गर नहीं                  तो सेशनल में ही सही
फ़ैल ख़तम कीजिये               दान   धरम  कीजिये

आरजू हुजूर से              छात्र आते दूर से
उनको पास कीजिये        मत निराश कीजिये
दिल किसी का ना दुखे        ये ही बड़ा धर्म है
सबकी दुआ लीजिये         छह के साठ  कीजिये   
अब के लूंगी देख भी          किया जो फ़ैल एक भी
ये बात है खरी डीयर          मै जाउंगी  चली पीहर
दिल को नरम  कीजिए       दान धरम   कीजिये

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।