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शनिवार, 9 नवंबर 2013

रावण दहन

                 रावण दहन

आज मारो एक रावण,दूसरा कल फिर खड़ा है
और अगले बरस वाला ,आज वाले से बड़ा है
दर्प का रावण हमेशा ,तामसी है, तमतमाता
भेष धर कर साधू का ,सदभाव की सीता चुराता
मान का हनुमान लेकिन ,ढूँढता  सीता ,निरंतर
पार करता,लांघ जाता ,प्रलोभन के ,सब समंदर
और उसकी ,पूंछ प्रिय पर,आग जब रावण लगाता
कोप कपि का उग्र होकर ,स्वर्ण की लंका जलाता
धर्म और विवेक ,बन कर ,राम,लक्ष्मण ,सदा आते
वानरों की फ़ौज लेकर,गर्व रावण का मिटाते
हर दशा में,दशानन के ,अहम् का है हनन होता
हम मनाते हैं दशहरा और   रावण  दहन होता

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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