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सोमवार, 25 नवंबर 2013

जीवन के दो रंग

     जीवन के दो रंग
               १
बचपने में लहलहाती घास थे
मस्तियाँ,शैतानियां ,उल्लास थे
ना तो थी चिता कोई,ना ही फिकर ,
मारते थे मस्तियाँ,बिंदास थे
                २
हुई शादी ,किले सारे ढह गये 
दिल के अरमां ,आंसुओं में बह गये 
लहलहाती घास ,बीबी चर गयी,
पी गयी वो दूध ,गोबर रह गये

घोटू 

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