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शुक्रवार, 8 नवंबर 2013

बेझिझक आनंद लें हम

      बेझिझक आनंद लें हम

दोस्ती मेरी तुम्हारी       ,दुग्ध जैसी ,शुद्ध पावन
पर झिझक कि खटाई का,ज़रा सा पड़ गया जावन
जम गया है दूध सारा ,बन गया है दही सुन्दर
शीघ्र इसका स्वाद ले लें ,कहीं खट्टा जाय ना पड़
दूध का तो ले न पाये ,दही का ही स्वाद ले लें
मधुर सी लस्सी बनाकर ,क्यों न हम आल्हाद ले लें
नहीं तो मथनी समय की,बिलो कर घृत छीन लेगी
और फिर तो छाछ खट्टी ,सिर्फ ही बाकी बचेगी
और तुमको कढ़ी बनने ,उबलना फिर से पडेगा
दूध के गुण ना मिलेंगे,स्वाद थोडा सा बढ़ेगा
क्यों नहीं फिर दूध का ही ,बेझिझक आनंद लें हम
या दही उसका जमा दें,नहीं फटने ,मगर दें हम

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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