पृष्ठ

सोमवार, 11 नवंबर 2013

सर्दियों की दस्तक

        सर्दियों की दस्तक 

                          
नारियल के तेल में अब ,
श्वेत श्वेत कुछ रेशे
           ऐसे मंडराने लगे है
जैसे झील के किनारे ,
विदेशी सैलानी पक्षी,
            फिर से अब आने लगे है
अंग जो तरंग  भरते ,
उमंगें  नयी तन में,
            अब ढके जाने लगे है
सांझ  आये ,सिहरता तन
क्योंकि  सूरज देवता भी ,
              जल्दी घर जाने लगे है
गरम गरम चाय ,काफी,
प्याज ,आलू के पकोड़े
                आजकल  भाने लगे है
दे रही है  शीत दस्तक,
ऐसा लगता सर्दियों के,
                अब तो दिन आने लगे है  
घोटू 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।