ज़मीन नफ़रत की , और खाद मिलायी दंगों की , वोट की फसल पाने के लिए , हकीकत यही है सियासत में घुस आये नंगों की , सत्ता मिलते ही एकदम ,
कैसे सूरत औ सीरत
बदल जाती है वोट के भिखमंगो की , चेहरों पर इनके ना जाना , दीखतेहै ये जरुर इंसानों से करम और हरकतें हैं भुजंगों की घूम रहे कई लायक सड़कों पर , क्या करें विवश है करने को चाकरी , राजनीति में मौज मनाते लफंगों की , विनोद भगत
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