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सोमवार, 16 सितंबर 2013

दर्द और दवा

         दर्द और दवा

कभी तुम नाराज़ होते ,कभी हो उल्फत दिखाते
दर्द भी देते तुम्ही हो,और तुम्ही मलहम लगाते
कभी खुशियों में डुबोते ,कभी करते गमजदा हो
कभी दिखती बेरुखी है ,कभी हो जाते फ़िदा हो
बताओ ना ,इस तरह तुम,क्यों भला हमको सताते
दर्द भी देते तुम्ही हो ,और तुम्ही मलहम लगाते
कभी तुम नज़रें चुराते ,कभी लेते हो चुरा दिल
और कभी तुम सज संवर के ,दिखाते हो अदा कातिल
कभी तो हो तुम लजाते,और कभी आँचल गिराते
दर्द भी देते तुम्ही हो,और तुम्ही मलहम लगाते
बाँध कर बाहों के बंधन में,हमें जब प्यार करते
जी में जो आये करें हम,इस तरह आजाद करते
हमें पिघला ,खुद पिघलते ,आग हो इतनी लगाते
दर्द भी देते तुम्ही हो ,और तुम्ही मलहम लगाते

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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