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शुक्रवार, 16 अगस्त 2013

जीवन यात्रा

        जीवन यात्रा

ये जीवन तो क्षण भंगुर है ,एक बुलबुला है पानी का
टेड़ा मेडा ,ऊबड़ खाबड़ ,ये रास्ता है ,जिंदगानी  का
पग पग पर आती बाधाएं,बिखरे पड़े राह में  कांटे
हरियाली है ,धूप कहीं है ,कहीं मरुधर  के सन्नाटे
मंजिल का कुछ पता नहीं है ,पथिक भटकता ,आगे बढ़ता
सफ़र कहाँ पर,कब रुक जाए ,कभी किसी को पता न चलता 
बारिश कभी,कभी ओले है ,कभी शीत की चुभती ठिठुरन
कभी थपेड़े ,गर्म हवा के ,सूर्य  तपिश से जल जाता तन
एक तो जीवन पथ ही दुर्गम,उस पर मौसम तुम्हे सताता
बदला करती परिस्तिथियाँ ,और सुख दुःख है आता ,जाता
बिना डिगे जो चलता रहता ,बढ़ता रहता धीरज धर  कर
 निश्चित उसे सफलता मिलती ,और पहुँच जाता मंजिल पर
मिले हमसफ़र ,साथ निभाता ,होता अंत परेशानी का
ये जीवन तो क्षण भंगुर है ,एक बुलबुला है  पानी का

मदन मोहन बाहेती'घोटू'



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