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बुधवार, 21 अगस्त 2013

तकिया- तूने क्या क्या किया

      तकिया- तूने क्या  क्या किया 

वही कोमल बदन सुन्दर ,है प्यारा  और मुलायम है
ये तकिया ,रेशमी प्यारा ,भला तुमसे कहाँ कम है
कोई भी पोज में रखलो ,काम ये रोज आता  है
न सजने और संवरने में , कई घंटे  लगाता है
न फरमाईश है गहनों की ,न होटल की ,घुमाने की
और ना इसकी आदत है  ,कोई नखरे  दिखाने की
बिना ही ना नुकर कर के ,ये बंध ,बाँहों में जाता है
रखो सर इस पे ,सो जाओ,मज़े से ये सुलाता  है
अगर तुझमे और तकिये में ,कोई च्वाइस मिला होता
तो जाहिर मैंने निश्चित में ही,तकिये को चुना होता
कही ये बात मैंने ,बीबीजी का दिल  जलाने को
तो अगली रात ,मुझको ना ,मिले तकिये सिरहाने को
दूसरे  दिन सवेरे ही ,सुधारी हमने ,निज गलती
कहा बीबी के आगे एक तकिये की है क्या हस्ती
नहीं इसमें  में,कोई हरकत ,अदा ना कोई सिसकारी
न वो बंधन है कि  जिसमे बंध ,लगे बीबी हमें प्यारी
बड़ा निर्जीव सा निरीह है ये रुई  का पुतला
शुरू में नर्म,दब दब कर ,मगर हो जाता है ये पतला
मगर पत्नी ,शुरू में पतली ,फिर वो फूल जाती है
ये काम आता है सोने में,वो दिन भर काम आती है
जगह बीबी की कैसे भी ,ये तकिया  ले नहीं सकता
जो सुख बीबी से मिलता है ,वो तकिया दे नहीं सकता

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

 
 


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