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बुधवार, 31 जुलाई 2013

अंदाजे इश्क

        
          अंदाजे  इश्क
न साडी, ना ढका आँचल ,न चेहरे पर कोई घूंघट
न गहनों से लदी  काया,न शर्मो लाज का नाटक
फटी सी जीन्स ,ढीला टॉप,और चंचलता निगाहों में
भरी मस्ती और बेफिक्री ,शरारत है   अदाओं   में
बड़ी बिंदास बन कर तुम,मेरे पहलू  में आती हो
बड़ी हो बेतकल्लुफ ,रात भर ,मुझको सताती हो
तुम्हारे प्यार का अंदाज ये ,मुझको   सुहाता  है
कि खुल कर खेलने में ही ,मज़ा उल्फत का आता है

 मदन मोहन बहेती'घोटू'


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