पृष्ठ

रविवार, 23 जून 2013

नामाक्षर गण्यते

             नामाक्षर  गण्यते
           
 दुशयंत  ने,शकुंतला से गंधर्व शादी रचाई 
उसे  भोगा ,और,
अपने नाम लिखी एक अंगूठी पहनाई 
और राजधानी चला गया,यह कह कर
'नामाक्षर गण्यते' याने,
मेरे नाम के तुम गिनना अक्षर 
इस बीच मै आऊँगा  
और तुम्हें महलों मे ले जाऊंगा 
गलती से शकुंतला की अंगूठी खो गई 
और कई दिनो तक,जब दुष्यंत आया नहीं 
तो शकुंतला गई राज दरबार 
पर दुष्यंत ने पहचानने से कर दिया इंकार 
 जब भी चुनाव नजदीक आता है 
मुझे ये किस्सा याद आ जाता है  
क्योंकि ,आज की सत्ता ,दुशयंत सी है,
जो चुनाव के समय,
शकुंतला सी भोली जनता पर,
प्रेम का प्रदर्शन कर ,
सत्ता का सुख भोग लेती  है 
और फिर उसे कभी अंगूठा ,
या आश्वासन की अंगूठी पहना देती  है 
साड़ेचार अक्षरों का नाम लिखा होता है जिस पर 
सत्ता सुख की मछली ,
उस अंगूठी को निगल जाती है ,पर 
और गुहार करती ,जनता,जब राजदरबार जाती है 
पहचानी भी नहीं जाती है 
हाँ,नामाक्षर गण्यते का वादा निभाया जाता  है 
उसके नाम का एक एक अक्षर,
एक एक वर्ष सा हो जाता है 
और तब कहीं साड़े चार साल बाद 
उसे आती है जनता की याद 
क्योंकि पांचवें साल मे,
 आने वाला होता है चुनाव  
और सत्ताधारियों को याद आने लगता है,
जनता के प्रति अपना  लगाव 
जब भी चुनाव नजदीक आता है 
मुझे ये किस्सा याद आता है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।