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रविवार, 16 जून 2013

गुजरा हुआ जमाना

           गुजरा हुआ जमाना 
सूरज रोशन करता है दिन,चाँद चाँदनी बिखराता 
बहती सुंदर हवा सुहानी ,बादल  पानी  बरसाता 
ये सारे उपहार प्रकृति के ,देता है ऊपर वाला 
सब उपकार मुफ्त ,पैसे ना लेता है ऊपर वाला 
लेकिन हम सब दुनिया वाले जब थोड़ा कुछ करते है 
नहीं मुफ्त मे कुछ भी मिलता ,पैसे देना पड़ते है 
करे रात को घर रोशन तो बिजली का बिल है बढ़ता 
पानी की बोतल पीने को ,दस रुपया देना पड़ता 
और हवा के झोंके  ए सी ,कूलर ,पंखों से  आते 
एक तो मंहगे दाम और फिर है दूनी बिजली खाते 
जब ये सब उपकरण नहीं थे ,रात छतों पर  सोते थे 
ठंडी मस्त हवा के झोके ,बड़े सुहाने  होते थे 
मटकी और सुराही मे भर,पीते थे ठंडा पानी 
रोटी ,चटनी सब्जी खाते ,और मीठी सी गुडधानी
बड़ा मस्तमौला जीवन था ,ना थी चिंता कोई फिकर 
न थी आज सी भागदौड़ी और काम करना दिन भर 
बहुत तरक्की की पर खोया ,मन का चैन पुराना वो 
हमे याद आता है अक्सर ,गुजरा हुआ  जमाना  वो 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'   

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