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मंगलवार, 11 जून 2013

बिल्लियों की लड़ाई में मज़े बन्दर लूटता --

 
              बिल्लियों की लड़ाई में मज़े बन्दर  लूटता

कह  रहा हूँ  बात ये सच ,नहीं बिलकुल  झूंठ है
बुजुर्गों को  दो तबज्जो ,वरना जाते     रूठ  है
उनकी इज्जत और उनका मान रखना चाहिये ,
वरना उनका दिल दुखी होता है,जाता टूट   है
लाभ उनके अनुभव का हमको लेना चाहिये ,
वर्ना घर के सदस्यों में ,जाती है पड़  फूट  है
दो अलग खेमो में बंट  जाता सकल परिवार है,
एक दूजे के विरोधी ,बन जाते दो  गुट  है
बिल्लियों की लडाई में मज़े बन्दर उठाता ,
और सारी रोटियां ,जाता मज़े से लूट है
मन की चाही  बहू ,बेटा लाया है ,स्वागत करो,
नयी पीड़ी को ज़रा तो देनी  पड़ती  छूट है
दौर तुम्हारा है गुजरा , हाथ से छूटी पकड़,
नहीं अच्छा ,छोड़ना घर ,और जाना रूठ है
रूठने और मनाने का ,खेल सारा छोड़ दो ,
सफलता तब मिलेगी जब ,सब के सब एकजुट है
कमान्डर बन करके उनका पथ प्रदर्शन कीजिये ,
मोरचे पर जोश से लड़ता  नया रंगरूट है
हो अगर मकसद बड़ा तो अहम् पड़ता त्यागना ,
बताओ ये बात मेरी ,सत्य है या  झूंठ है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '


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