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रविवार, 28 अप्रैल 2013

तरक्की

       तरक्की

भीड़ जबसे ये उमड़ने लग गयी है
सड़क की चोडाई बड़ने लग गयी है
इस तरह इमारतों के उगे  जंगल,
गाँव की सूरत बदलने  लग गयी है 
मुश्किलों से साइकिल आती नज़र थी ,
कई कारें वहां चलने   लग गयी है
जलते थे मिटटी के चूल्हे जिन घरों में ,
अब वहां पर गेस  जलने लग गयी है
तेल के दिये  नहीं अब टिमटिमाते,
ट्यूब लाइट अब चमकने लग गयी है
कभी उपले थापती आती नज़र थी ,
बेटियाँ ,स्कूल पढने लग गयी है
नमस्ते अब हाई ,हल्लो ,हो गया है ,
चिठ्ठियाँ ,ई मेल बनने लग गयी है
 तरक्की ने इस तरह है  पग पसारे ,
सभी की हालत सँवरने  लग गयी है
'घोटू'लेकिन  भाईचारा हो गया गुम ,
बात बस ये मन में खलने लग गयी है
घोटू 

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