दुनिया -मिठाई की दूकान
दुनिया क्या है ,मै तो कह्ता,यह दूकान मिठाई की ,
ले कढाई ,तल रहा जलेबी, हलवाई ,ऊपरवाला
हर इंसान,जलेबी जैसा ,अलग अलग आकारों का,
जीवन रस की ,मधुर चासनी में ,डूबा है,मतवाला
गरम गरम ,रस भरी ,कुरकुरी,मन करता है खाने को ,
मगर रोकता 'डाईबिटिज'का डर ,कहता ,मत खा ,मत खा
कल जो होना है देखेंगे,मगर आज हम क्यों तरसें,
मन मसोस कर ,क्यों जीता है,जी भर इसका मज़ा उठा
जीवन रस से भरा हुआ है,राजभोग,रसगुल्ला है ,
बर्फी,कलाकंद सा मीठा ,या फिर फीनी घेवर सा
इसका कोई छोर नहीं है ,ये तो है लड्डू जैसा ,
खालो,वरना लुढ़क जाएगा ,ये प्रसाद है,इश्वर का
बूंदी बूंदी मिल कर जैसे,बनता लड्डू बूंदी का ,
वैसे ही बनता समाज है,हम सब बूंदी के दाने
रबड़ी ,मोह माया जैसी है ,लच्छेदार ,स्वाद वाली,
उंगली डूबा डूबा जो चाटे ,इसका स्वाद वही जाने
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
वाह वाह गुरुवर | बहुत सुन्दर रचना | आभार
जवाब देंहटाएंbahut meetha dhanywaad
जवाब देंहटाएंghotoo