मज़ा होली का
सुघड पड़ोसन ,कितनी सुन्दर ,आती जाती,मुस्काती है
भले तुम्हारे ,मन को भाती ,पर भाभीजी ,कहलाती है
लेकिन जब होली आती है ,मिट जाता ,मन का मलाल है
उनके कोमल से गालों पर ,जब हम मल सकते गुलाल है
एक साल में,एक बार ही ,मिट सकती ,मन की भड़ास है
होली का यह पर्व इसलिये ,मन को भाता ,बड़ा ख़ास है
घोटू
प्रदीप जी - कृपया बैकग्राउंड बदल लें , या फिर टेक्स्ट बॉक्सेस को "opaque" कर लें । पढना बहुत मुश्किल होता हैं ।
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