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गुरुवार, 21 मार्च 2013

अविरल जीवन

        अविरल जीवन

जल से बादल,बादल से जल
मेरा जीवन चलता अविरल
सुख आते है,मन भाते है
संकट आते,टल जाते है 
कभी गरजना भी पड़ता है
कभी कड़कना भी पड़ता  है
कभी हवा में उड़ता चंचल
जल से बादल ,बादल से जल
कभी रुई सा उजला,छिछला
विचरण  करता हूँ मै  पगला
कभी प्रसव पीड़ा में काला
होता जल बरसाने वाला
घुमड़ घुमड़ छाता धरती पर
जल से बादल,बादल से जल
उष्मा से निज रूप बदलता
तप्त धरा को शीतल करता
उसे हरी चूनर पहराता
विकसा बीज,खेत लहराता
बहती नदिया,भरे सरोवर
जल से बादल,बादल से जल

मदन मोहन बाहेती'घोटू;

1 टिप्पणी:

  1. bahut sundar rachna ..arthpoorna bhi aur bhavpoorna bhi mere blog par aapka bhi swagat hai :-)

    मेरी नई कविता पर आपकी उपस्थिति चाहती हूँ Os ki boond: सिलवटें ....

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