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बुधवार, 27 फ़रवरी 2013

नयनों की भाषा

        नयनों  की भाषा 

 मेरी थी उत्कट अभिलाषा ,समझूं मै नयनो की भाषा
दीदे फाड़ ,उमर भर सारी ,रहा देखता  सिर्फ  तमाशा
कभी मटकते,कभी खटकते कभी भटकते है ये नयना
कभी सुहाते,मन को भाते ,कहीं अटकते है ये नयना
सुरमा लगा,सूरमा बन कर,तीर चलाते है ये नयना
कोई मृग से,कोई कमल की तरह सुहाते है ये नयना
कैसे तिरछे नयन किसी के ,मन को घायल,कर कर  जाते
कैसे कोई नयन चुरा कर ,बार बार हमको तड़फाते 
कैसे तन कर गुस्सा करते,कैसे झुक कर हाँ कह जाते
हो जाते है ,बंद मिलन में,विरहां  में आंसू ढलकाते 
कैसे आँखें,चुन्धयाती है ,कैसे आँखे रंग बदलती
अच्छे अच्छों को बहकाती,जब ये चंचल होकर चलती
दिखी कोई सुन्दर सी कन्या ,कोई आँखें फाड़ देखता
कोई आँखें टेड़ी करता,तो कोई आँखें तरेरता
कैसे आँखों ही आँखों में ,हो जाते है कई इशारे
कोई आँख में धूल झोंकता,कोई दिखाता सपने प्यारे
होती आँखों की कमजोरी,कभी दूर की,कभी पास की
आँख बिछाये ,विरहन जोहती,राह  पिया की,लगा टकटकी
नयन द्वार से आकर कोई ,कैसे बस जाता है दिल में
चोरी चोरी नयन लड़ाना , डाल दिया करता मुश्किल में
कैसे कोई लाडला बच्चा,बनता है आँखों का  तारा
कैसे आँखें बंद होने पर,मिट जाता अस्तित्व हमारा
कैसे चमक आँख में आती,जब मिल जाता प्यारा हमदम
कैसे कोई ,किरकिरी बन कर ,आँखों में चुभता है हरदम
कैसे आँख इशारा करती,आता कोई याद,फडकती
थक जाने पर ,लग जाती है,कैसे सोती,कैसे जगती
कैसे कोई ,आँख मार कर,लड़की पटा लिया करता है
कैसे कोई  ,बना बेवफा ,नज़रें हटा लिया करता  है
कुछ रिसर्च करने वालों की,एक स्टडी ये कहती है
पलकें झपकाने में आँखे,बारह बरस बंद रहती है 
कभी अपलक ,उन्हें निहारे,बार बार या झपकें पलके
कैसे इन प्यारे नैनों में,बस जाते है,सपने कल के
कैसे एक लीक काजल की,इनकी धार तेज करती है
कैसे दुःख में,या फिर सुख में,ये आँखें,पानी भरती है  
 कैसे  मोती,आंसूं बन कर,टपका करते है आँखों से
कैसे दो दीवाने प्रेमी,बातें करते है आँखों से 
दिल से दिल तो मिले बाद में ,पहले आँख मिलाई जाती
लेने देने से बचना हो,तो फिर आँख चुराई जाती
कोई जब है मनको भाता ,आता ,आँखों में बस जाता
कैसे साहब की आँखों में,चढ़ कर कोई तरक्की पाता
आते नज़र ,गुलाबी डोरे,अभिसारिका की आँखों में
होती आँखे ,लाल क्रोध से ,कभी नशा छाता आँखों में
कभी बड़ी खुशियाँ मिलती है ,और मिलती है कभी निराशा
मन में थी उत्कट अभिलाषा ,समझूं मै नयनो की  भाषा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

6 टिप्‍पणियां:

  1. कभी मटकते कभी अटकते मन को भाते ये नैना..,
    कभी खटकते कभी भटकते कभी सुहाते ये नैना..,
    सुरमई सुर सुर में तन कर बाण चलाते ये नैना..,
    कहीं हरिण पटल कोमल कमल कहाते ये नैना..,

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  2. बहुत उम्दा ..भाव पूर्ण रचना .. बहुत खूब अच्छी रचना इस के लिए आपको बहुत - बहुत बधाई

    मेरी नई रचना
    ये कैसी मोहब्बत है

    खुशबू

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुतिकरण,आभार है आपका

    आज की मेरी नई रचना जो आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार कर रही है


    ये कैसी मोहब्बत है

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  4. बहुत बढ़िया !
    नयनों पर काव्यमय थीसिस !...अत्यंत रोचक !

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