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सोमवार, 25 फ़रवरी 2013

संतान और उम्मीद

      संतान और उम्मीद

अपनी संतानों से ज्यादा ,मत रखो उम्मीद तुम,
           परिंदे हैं,उड़ना सीखेंगे ,कहीं उड़ जायेंगे
घोंसले में बैठ कर ना रह सकेंगे उम्र भर,
          पेट भरने के लिए ,दाना तो चुगने जायेंगे
बेटियां तो धन पराया है,उन्हें हम एक दिन,
          किसी के संग ब्याह देंगे ,वो बिदा हो जायेंगी
ब्याह बेटे का रचाते ,बहू लाते चाव से,
           आस ये मन में लगाए,घर में रौनक आएगी
और पत्नी संग अगर वो,मौज करले चार दिन,
         लगने लगता है तुम्हे,बेटा  पराया हो गया
बात पत्नी की सुने और उस पे ज्यादा ध्यान दे ,
        जोरू का गुलाम वो माता का जाया हो गया
अगर बेटा कहीं जाता,नौकरी या काम से ,
        सोचने लगते हो बीबी ने अलग तुमसे किया
दूर तुमसे हो गया है ,तुम्हारा लख्ते -जिगर,
         फंसा अपने जाल में है,बहू ने उसको लिया
उसके भी कुछ शौक है और उसके कुछ अरमान है,
         जिंदगी शादीशुदा के ,भोगना है सुख सभी
उसके बीबी बच्चे है और पालना परिवार है ,
          बोझ जिम्मेदारियों का ,पड़ने  दो,उस पर अभी 
अरे उसको भी तो अपनी गृहस्थी है निभाना ,
           उसको अपने ढंग से ,जीने दो अपनी जिंदगी
खान में रहता जो पत्थर ,कट के,सज के ,संवर के ,
           हीरा बन सकता है वो ,नायाब भी और कीमती

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छे!
    नीरज'नीर'
    www.kavineeraj.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  2. सचाई से रूबरू कराती प्रस्तुती


    सार्थक प्रस्तुती बहुत अच्छी रचना

    मेरी नई रचना

    ये कैसी मोहब्बत है

    खुशबू

    जवाब देंहटाएं

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