पृष्ठ

रविवार, 10 फ़रवरी 2013

मेरा घर

शाहजहानाबाद के दिल में बसा
सुकून-ओ-अमन-चैन से परे 
शोरगुल के दरमियाँ
एक दिलकश इलाके में
एक उजडती बेनूर पुरानी हवेली
दीवारों पर बारिश के बनाये नक़्शे 
इधर उधर पान की पीकों की सजावट
और मेरे माज़ी की यादें इधर उधर
काई बनकर हरी हो रही हैं रोज़
एक जानी पहचानी सी ख़ामोशी
वो अंधेरों में भी गुज़रते सायों का एहसास
गमलों के पौधों के पत्तों के बीच
चहल कदमी करते चूहे
जगह जगह फर्श पर जंगली कबूतरों की बीट की सजावट
इन सबके बीच 
छोटा सा टुकड़ा आसमान का
और उस आसमान में
पिघलते काजल सी सियाह रात का कोना पकडे 
बादलों के बीच से गुज़रता चाँद
पहले भी ऐसे ही आता था मेरे घर
बारिश के बाद की मंद गर्मी में
छज्जे पर खड़े 
मैं 
यूँ ही ख्वाब बुना करता था
दीवारों से लिपटे पीपल के
दरीचों के साए में
तुम्हे भी याद किया करता था
सर्दियों की सीप सी सर्द रातों में
नर्म दूब के बिछोने पर
अक्सर मेरा जिस्म तपा करता था
तेरे जाने से भी कुछ नहीं बदला था
तेरे आने से भी कुछ नहीं बदला है
आज फिर रात भी वही है
और चाँद भी वही आया है
और आज भी वही तपिश 
सीने में जल रही है
मैं वीरान घर के बरामदे में
खामोश खड़ा
महसूस करता हूँ
वोह तेरे आगोश की तपिश
सहर होने तक
और बस यूँ ही
बन जाते हैं यह आसमानी सितारे 
सियाह रात की कालिख में जड़े सितारे
लफ्ज़ बन उठते हैं अपने आप
लिख जाते हैं हर रात एक कविता
मेरे दिल का हाल 
यही है मेरे दिल की दास्तान 
यही है मेरे दिल की दास्तान

7 टिप्‍पणियां:

  1. Hello tushar ...aapki kavita bahut achhi hai ..mei kaavya padhya ke baare mei jyada nahi jaante ab tak mai yhi samjhti rahi hu ki ek ley badhd rachna hi padhya ke antargat aati hai ..kripya mere is confusion ko door karein

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

      हटाएं
    2. मुझे सच में ज्ञान नहीं है के कविता के कितने प्रकार होते हैं गद्य, पद्य, दोहा, सोरटा आदि इत्यादि मुझे कुछ नहीं पता के किस में क्या होता है | मेरे दिल में जो भी आता है बस वही शब्द बन यहाँ उतर जाता है | फिर कहाँ लय कहाँ ताल जाती है मुझे सच में कुछ ज्ञात नहीं रहता | आपसे गुज़ारिश है के ये सवाल आप किसी उपयुक्त व्यक्ति से करें मैं इस सवाल के लिए उचित इंसान नहीं हूँ और क्षमा चाहूँगा के आपके इस सवाल का जवाब देने में असमर्थ हूँ | कृपया मुझे क्षमा करें |

      हटाएं
    3. तुषार जी आप क्षमा मांग कर मुझे सह्र्मिन्दा न करें ...मैंने तो बस यु ही पूछ लिया था ..क्युकी मुझे भी इसके बारे में ज्ञान नहीं है ... शुक्रिया

      हटाएं
  2. बढ़िया प्रस्तुति -
    शुभकामनायें आदरणीय ||

    जवाब देंहटाएं
  3. पारुल जी, रविकर जी सबसे पहले आप दोनों का बहुत बहुत शुक्रिया |

    जवाब देंहटाएं

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।