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शुक्रवार, 18 जनवरी 2013

अपनी अपनी किस्मत

       अपनी अपनी किस्मत

जब तक बदन में था छुपा ,पानी वो पाक था,
बाहर  जो निकला पेट से ,पेशाब बन गया
बंधा हुआ था जब तलक,सौदा  था लाख का,
मुट्ठी खुली तो लगता है वो खाक बन गया
कितनी ही बातें राज की,अच्छी दबी हुई,
बाहर जो निकली पेट से  ,फसाद बन गया
हासिल जिसे न कर सके ,जब तक रहे जगे,
सोये तो ,ख्याल ,नींद में आ  ख्वाब बन गया
जब तक दबा जमीं में था,पत्थर था एक सिरफ ,
हीरा निकल के खान से ,नायाब   बन गया
कल तक गली का गुंडा था ,बदमाश ,खतरनाक,
नेता बना तो गाँव की वो नाक बन गया
काँटों से भरी डाल पर  ,विकसा ,बढ़ा हुआ ,
वो देखो आज महकता  गुलाब बन गया
घर एक सूना हो गया ,बेटी  बिदा  हुई,
तो घर किसी का बहू पा ,आबाद हो गया
अच्छा है कोई छिप के और अच्छा  कोई खुला,
नुक्सान में था कोई,कोई लाभ बन गया
किस का नसीब क्या है,किसी को नहीं खबर,
अंगूर को ही देखलो ,शराब   बन  गया 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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