पृष्ठ

शुक्रवार, 18 जनवरी 2013

खरामा - खरामा

खरामा - खरामा चली जिंदगी,
खरामा - खरामा घुटन बेबसी,

भरी रात दिन है नमी आँख में,
खरामा - खरामा लुटी हर ख़ुशी,

अचानक से मेरा गया बाकपन,
खरामा - खरामा गई सादगी,

शरम का ख़तम दौर हो सा गया,
खरामा - खरामा मची गन्दगी,

जमाना भलाई का गुम हो गया,
खरामा - खरामा बुरा आदमी,

जुबां पे रखी स्वाद की गोलियां,
खरामा - खरामा जहर सी लगी.....


सादर 
अरुन शर्मा "अनंत'

7 टिप्‍पणियां:

  1. कहे बात मन की खरामा खरामा |
    जमाने वतन की खरामा खरामा ||
    अरुण जब अकेले गजल पढ़ रहा है-
    चला कौन आये खरामा खरामा ||

    मात्रा का दोष नहीं है ना -

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आभार रविकर सर त्रुटी तो हो ही नहीं सकती तो दोष कहाँ होगा, आपने तो रचना को एक नया आयाम दे दिया है, अनेक-अनेक धन्यवाद.

      हटाएं
  2. behatareen
    Rvikar ji ne aur hi jivant kar diya prastuti ko,( anubhavi log yadi aise sudhar karte rahe to ham unke aabhari honge)अचानक से मेरा गया बाकपन,
    खरामा - खरामा गई सादगी,

    शरम का ख़तम दौर हो सा गया,
    खरामा - खरामा मची गन्दगी,

    जमाना भलाई का गुम हो गया,
    खरामा - खरामा बुरा आदम
    जुबां पे रखी स्वाद की गोलियां,
    खरामा - खरामा जहर सी लग
    SUDHAROPARANT,ARUN JI, ESE AASIRVAD KE RUP ME SWIKAR KIJIYE,
    "कहे बात मन की खरामा खरामा |
    जमाने वतन की खरामा खरामा ||
    अरुण जब अकेले गजल पढ़ रहा है-
    चला कौन आये खरामा खरामा ||

    जवाब देंहटाएं
  3. मटक कर, लहरा कर जो धीरे धीरे से चले

    जवाब देंहटाएं

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।