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सोमवार, 21 जनवरी 2013

माँ

                          माँ

कलकल करती ,मंद मंद बहती है अविरल
भरा हुआ है जिसमे ,प्यार भरा शीतल जल
दो तट बीच ,सदा जीवन जिसका मर्यादित
जो भी मिलता ,उसे प्यार से करती  सिंचित
गतिवान मंथर गति से बहती सरिता  है
ये मत पूछो ,माँ क्या है,माँ तो बस माँ है
सीधी सादी ,सरल मगर वो प्यार भरी है
अलंकार से होकर आभूषित  निखरी है
जिसमे ममता ,प्यार,छलकता अपनापन है
कभी प्रेरणा देती,विव्हल करती मन है
प्यार,गीत,संगीत भरी कोमल कविता है
ये मत पूछो माँ क्या है,माँ तो बस माँ है
यह जीवन तो कर्मक्षेत्र है ,कार्य करो तुम
सहो नहीं अन्याय ,किसी से नहीं डरो  तुम
मोह माया को छोड़ ,उठो,संघर्ष करो तुम
अपने 'खुद' को पहचानो ,उत्कर्ष करो तुम
जीवन पथ का पाठ पढ़ाती ,वो गीता है
ये मत पूछो माँ क्या है,माँ तो बस माँ है
जिसने तुम्हारे जीवन में कर उजियाला
मधुर प्यार की उष्मा देकर तुमको पाला
जिसकी किरणों से आलोकित होता जीवन
तम को हटा,राह जो दिखलाती है हरदम
अक्षुण उर्जा स्त्रोत ,दमकती वो सविता है
ये  मत पूछो ,माँ क्या है,माँ तो बस माँ है                  

मदन मोहन बाहेती'घोटू'



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