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गुरुवार, 6 सितंबर 2012

रुंगावन

       रुंगावन

मै तो लेने गया था ,इस जग की जिम्मेदारियां ,
                    रुंगावन  में बाँध दी संग,उसने कुछ  खुशियाँ मुझे
कुछ ठहाके,कहकहे कुछ,और कुछ मुस्कान भी,
                    लगी फिर से अच्छी लगने, ये तेरी दुनिया   मुझे
देता है सौदा खरा और नहीं डंडी मारता,
                    मुकद्दर से ही मिला है,तुझसा एक बनिया मुझे
कितने कांटे,कितने पत्थर और कितनी ठोकरें,
                    रोकने को राह ,रस्ते में मिला क्या क्या मुझे
  यहाँ से लेकर वहां तक ,मुश्किलें ही मुश्किलें,
                     पार करना पडा था एक आग का दरिया  मुझे
दूसरों के दोष मैंने देखना बंद करदिया,
                     नज़र खुद में ,लगी आने सैकड़ों ,कमियां मुझे
उसने रोशन राह करदी,सब अँधेरे मिट गए,
                       राह में मिल गयी बिखरी,हजारों खुशियाँ मुझे
लिखा था जो मुकद्दर में,उससे ज्यादा ही मिला,
                       उसकी मेहर हो गयी और  मिल गया क्या क्या मुझे

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

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