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शनिवार, 8 सितंबर 2012

दास्ताने -दोस्ती

    दास्ताने -दोस्ती

          १
नजर तिरछी डाल अपने हुस्न का जादू किया,
                    तीर इतने मारे उनने ,खाली  हो तरकश  गये
जाल तो था बिछाया,हमको  फंसाने के लिए,
                   मगर कुछ एसा हुआ की जाल में  खुद फंस गये
बस हमारी  दोस्ती की ,दास्ताँ इतनी सी है,
                    उनने देखा,हमने देखा,दिल में कुछ कुछ सा  हुआ,
उनने दिल में झाँकने की ,सिर्फ दी थी इजाजत,
                    हमने गर्दन और फिर धड,डाला ,दिल में बस गये
           २
 आग उल्फत की जो भड़की,बुझाये ना बुझ सकी,
                       वो भी बेबस हो गये और हम भी बेबस   हो गये
लाख कोशिश की निकलने की मगर निकले नहीं,
                       दिल की सकड़ी गली में वो,टेढ़े हो कर  फंस गये
सोचते है,बिना उनके,जिंदगी का ये सफ़र,
                        कैसे कटता,हमसफ़र बन,अगर वो मिलते नहीं,
शुक्रिया उनका करूं या शुक्र है अल्लाह का,
                         वो मिले,संग संग चले,सपने  सभी सच हो गये

मदन मोहन बाहेती;घोटू' 

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