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बुधवार, 19 सितंबर 2012

तुम भी भूखी,मै भी भूखा,आज तुमने व्रत रखा.....

         तुम भी भूखी,मै भी भूखा,आज तुमने व्रत रखा.....

प्रश्न मेरे जहन में ,उठता ये कितनी बार है

आग  क्यों दिल में लगाता,तुम्हारा दीदार है
जिसके कारण नाचता मै,इशारों पर तुम्हारे,
ये तुम्हारा हुस्न है या फिर तुम्हारा प्यार है
रसभरे गुलाबजामुन सी मधुर 'हाँ 'है तेरी,
और  करारे पकोड़ों सा,चटपटा  इनकार  है
प्यार से नज़रें उठा कर,मुस्करा देती हो तुम,
महकने लगता ख़ुशी से,ये मेरा गुलजार है
तुम भी भूखे,हम भी भूखे,आज तुमने व्रत  रखा,
प्यार जतलाने  का ये भी अनोखा  व्यवहार है
बेकरारी   बढाती है ,ये तुम्हारी शोखियाँ,
और दिल को सुकूं देता, तुम्हारा इकरार है
नयी साड़ी मंगाई थी,सज संवरने के लिए,
और अब उस साड़ी में भी ,तुम्हे लगता भार है
आज हमने तय किया है,यूं नहीं पिघलेंगे हम,
देखते हैं आपके,जलवों में कितनी धार है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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