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सोमवार, 13 अगस्त 2012

कसक मन में रह गयी है

कसक मन में रह गयी है

भावनायें बह गयी,संभावनायें  ढह गयी है

मिलन फिर हो पायेगा, ये आस धूमिल रह गयी है
अब तो  कहने सुनने को बाकी बचा ही और क्या है,
ये तुम्हारी बेरुखी ही बात सारी कह गयी है
एक तो वातावरण में,हवाएं फैली,विषैली,
और उस पर फिर अचानक,हवा उलटी बह गयी है
कलकलाती थी नदी पर जब से पानी थम गया है,
हो गयी फिसलन यहाँ पर,काई  की  जम तह गयी है
आस में ,मौसम बसंती,आयेगा,पत्ते लगेंगे,
जिंदगानी एक सूखा वृक्ष बन कर रह गयी है
पता ना,किस दिन ढहेगी,पर टिकी,मजबूत है ,
ये पुरानी इमारत,भूचाल  इतने सह गयी है
क्यों हुआ,कैसे हुआ,क्यों कर हुआ,क्या बतायें,
मगर ये होना न था,ये कसक मन में रह गयी है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार १४/८/१२ को चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा चर्चामंच पर की जायेगी आपका स्वागत है|

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