पृष्ठ

सोमवार, 2 जुलाई 2012

लज्जत

             लज्जत

जो मज़ा शादी के पहले,शादी के पश्चात् क्या
लुत्फ़ भूखे पेट का वो खाना खाने बाद क्या
सौ गुना बेहतर है सन्डे से सटरडे ईवनिग,
जल्दी उठने की फिकर में,सोवो वो भी रात क्या
देती है राहत जो आती, गर्मियों के बाद में,
झड़ी लग करती परेशां, ऐसी भी बरसात क्या
गोलगप्पे का मज़ा,पानी भरो और गटक लो,
देर की और गल गये  तो बचा उनमे  स्वाद क्या
समंदर के सीने से पैदा हो सीधे   भागती,
किनारे पर लहरों का देखा मिलन उन्माद क्या
कभी आइसक्रीम,कुल्फी,दही,रसगुल्ला कभी,
मज़ा दे हर रूप में जो,दूध की  है बात क्या
खाने की लज्जत है असली,लोग कहते उँगलियाँ,
मुंह में घुलता ही न जो रह जाये  फिर वो स्वाद क्या
पकड़ ऊँगली,सीखा चलना,अब दिखाते उँगलियाँ,
साथ में बढती उमर के,  बदलते हालात  क्या

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।