मन उड़न छू हो गया है
देख तुमको आज पहली बार कुछ यूं हो गया है
मन उड़न छू हो गया है
नीड़ में इतने दिनों तक,पड़ा था गुमसुम अकेला
बहुत व्याकुल हो रहा था, उड़न को वो पंख फैला
किन्तु अब तक उसे निज गंतव्य का था ना ठिकाना
देख तुमको बावरा सा, हो गया था वो दीवाना
फडफडा कर पंख भागा,रुका ना ,रोका घनेरा
और फुनगी पर तुम्हारे,ह्रदय की करके बसेरा
चहचहाने लग गया है,गजब जादू हो गया है
मन उड़न छू हो गया है
रहा है मिज़ाज इसका,शुरू से ही आशिकाना
देख कर खिलती कली को,मचलता आशिक दीवाना
कभी तितली की तरह से,डोलता था ये चमन में
गुनगुनाता भ्रमर जैसा,आस रस की लिए मन में
चाहता स्वच्छंद उड़ना,था पतंग सा आसमां में
पर अभी तक डोर उसकी,पकड़ कर थी,रखी थामे
उम्र के तूफ़ान में अब, मेरा काबू खो गया है
मन उड़न छू हो गया है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
sundar gajal.
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