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बुधवार, 18 अप्रैल 2012

भैयाजी! स्माईल!!

      भैयाजी ! स्माईल !!

गाँव गाँव घूमे हम,किये बहुत वादे
क्लीन स्वीप करने के लेकर  इरादे
जनता को तरक्की का, सपना दिखलाया
गरीबों के झोंपड़े में,खाना भी खाया
पर लगता समझदार,हो गयी है जनता
जबानी जमा खर्च से काम नहीं बनता
गोवा भी गया  और पंजाब हारे,
यू, पी . में 'हाथ' कुचल ,निकल गयी 'साईकिल'
और टी वी वाले कहते है "भैयाजी! स्माईल!
दिल्ली में कामनवेल्थ गेम्स भी करवाये
कितने ही बड़े बड़े ,फ्लायओवर बनवाये
मेट्रो भी लाये और नयी बसें आयी
क्या करें थोड़ी  जो बढ़ गयी मंहगाई
हम तो बस रह गए 'हाथ' ही हिलाते
और एम.सी.डी.भी गयी,'कमल'के खाते
लगता है 'अन्ना 'ने,जगा दिया इनको,
दिल्ली की जनता ने ,तोड़ दिया है दिल
और टी.वी.वाले कहते है"भैयाजी! स्माईल!! 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

1 टिप्पणी:

  1. बहुत अच्छी कविता ..किसके लिए है ..समझना मुश्किल नहीं..:)
    कलमदान

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