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बुधवार, 1 फ़रवरी 2012

चबा के अपनी जेबों में हिंदुस्तान रखते हैं

सीमाओं पर ये फौजी अपनी हथेली पे जान रखते हैं
अजीब सरफिरे हैं जो खुद को वतन पे कुर्बान करते हैं |

खुश रहे सलामत रहे उनके वतन का आम-ओ खास
गजब हैं फौजी कितना असल खुदका ये इमान रखते हैं |


उन्हें क्या पता की कैसे कैसे देश में हुक्मरान रहते हैं
जो चबा -चबा के अपनी जेबों में हिंदुस्तान रखते हैं |

मेरे देश में ये कैसी हवाएं चली है आजकल दोस्तों
वतन के गद्दार ही यहाँ फ़ौज पर शासन करते हैं |

अब सजा के क्या क्या बेचोगे "अमोल" यहाँ तुम
पंडित-मुल्ला भी यहाँ जेबों में कफ़न लिए घूमते हैं |

(यह रचना "काव्य संसार" फेसबुक समूह से ली गयी है ।)

3 टिप्‍पणियां:

  1. फ़ेसबुक समूह यानि??? ये रचना शायर नूर मोहम्मद नूर की प्रसिद्ध ग़ज़ल को तोड़-मरोड़ के पेश की गयी है. जिसने भी ये नकल की है, निंदनीय है. मूल रचना इस प्रकार है-

    वे ख़ाम-ख़्वाह हथेली पे जान रखते हैं
    अजीब लोग हैं मुँह में ज़ुबान रखते हैं

    ख़ुशी तलाश न कर मुफ़लिसों की बस्ती में
    ये शय अभी तो यहाँ हुक़्मरान रखते हैं

    यहँ की रीत अजब दोस्तो, रिवाज अजब
    यहाँ ईमान फक़त बे-ईमान रखते हैं

    चबा-चबा के चबेने-सा खा रहे देखो
    वो अपनी जेब में हिन्दोस्तान रखते हैं

    ग़मों ने दिल को सजाया, दुखों ने प्यार किया
    ग़रीब हम हैं मगर क़द्रदान रखते हैं

    वे जिनके पाँव के नीचे नहीं ज़मीन कोई
    वे मुठ्ठियों में कई आसमान रखते हैं

    सजा के जिस्म न बेचें यहाँ, कहाँ बेचें
    ग़रीब लोग हैं, घर में दुकान रखते हैं।

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