पृष्ठ

सोमवार, 27 फ़रवरी 2012

बचपन

सोचा न था इस तरह चला जायेगा वो
इन्तजार कर लें चाहें जितना ,
पर अब लौट के न आयेगा वो ,
कभी रोता कभी हँसता ,मुस्कुराता हुआ शरारतों से भरा
इस तरह बिछड़ जायेगा वो,
मांगते रह जायेंगे हम, पर अब न मिल पायेगा वो
यादों की दुनिया में जाके चुप गया है इस तरह की ,
अब ढूँढने पर भी नजर नहीं आयेगा वो ,
उस बचपन को अब यादों में ही तलाशना ,
क्योकि इस जनम में तो दोबारा नहीं मिल पायेगा वो ,
वो बचपन जो बिछड़ गया है हमसे सदा के लिए ,
यादों की दुनिया में ही मुस्कुराएगा वो,
सोचा न था इस तरह चला जायेगा वो
इन्तजार कर लें चाहें जितना ,
पर अब लौट के न आयेगा वो |


                                        अनु डालाकोटी

7 टिप्‍पणियां:

  1. भावपूर्ण रचना बहुत अच्छी लगी |
    आशा

    जवाब देंहटाएं
  2. कोई लौटा देमेरे बीते हुए दिन ,बीते हुए दिन ये मेरे बीते पल छीन ,जीवन की एक प्रावस्था होता है बचपन बीत गया जो बीत गया ..... बस यादें बुलातीं हैं कभी कभार ...

    जवाब देंहटाएं
  3. बचपन...कब लौट के आता है..
    बेहतरीन रचना..
    kalamdaan.blogspot.in

    जवाब देंहटाएं
  4. बचपने लौट के आने के लिए नहीं जाता, लेकिन हमें थोड़ा सा बचपना चुराकर सहेज कर रखना चाहिए।

    जवाब देंहटाएं

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।