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शनिवार, 25 फ़रवरी 2012

होली

खेलूंगी होली तोहरे ही साथ पिया ,
जाने न दूंगी तोहे आज पिया |
झूम झूम के डारू तुझपे रंग पिया ,
भीजूंगी आज तोहरे ही संग पिया ,
खेलूंगी होली तोहरे ही साथ पिया |
लगाऊं अबीर लगाऊं गुलाल गालो में तोहरे ,
ये मौका न जाने दू हाथ से पिया ,
खेलूंगी होली तोहरे ही साथ पिया |
बाँधी है प्रीत की डोरी जो तुझसे ,
उस प्रीत पे आने न दूंगी आंच पिया ,
खेलूंगी होली तोहरे ही साथ पिया |
छुडाये न छूटेगा ये
रंग पिया ,
इस प्रीत से भीज जायेगा तोहरा अंग पिया ,
खेलूंगी होली तोहरे ही साथ पिया |
खुली आँख और टूटा सपना ,
तू खड़ा है सरहद के पास पिया ,
अब कैसे खेलूंगी होली तोहरे साथ पिया ?
अब कैसे खेलूंगी होली तोहरे साथ पिया ?

                                                          अनु डालाकोटी                



7 टिप्‍पणियां:

  1. अनुभूतियों का धुंधलका ,दिवा स्वप्न की धुंध बड़ी भली लगती है .अच्छा भाव चित्र अच्छी रचना .

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  2. आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद् |

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  3. आपके ब्लॉग पर पहली बार आई हूँ अच्छा लगा इतना की अनुसरण कर रही हूँ | आज की प्रस्तुति भावभीनी है | बधाई |मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है|

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  4. holi ke saath ki thitholi ke bahane sarahad par mustaid jawaano ki vaastvik stihti kaa bhavnaatmak chitran

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